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बाल यौन शोषण व यातना से आनंदित होने का नशा : ‘पीडोफिलिया’ मनोरोग

मनदर्शन
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बाल यातना एवं अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस (4 जून )
बाल यातना एवं अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस (4 जून )

बाल यौन शोषण व यातना से आनंदित होने का नशा : ‘पीडोफिलिया’ मनोरोग

मनदर्शन-मिशन विशेष रिपोर्ट

बाल यातना एवं अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस (4 जून )

सत्यमेव जयते रियलिटी टी.वी. शो मेंबाल यौन शोषण की कुछ सच्ची घटनाये देख कर आप का मन जरुर कौतुहल व हैरानी के मनोभाव से भर गया होगा और मन में ये प्रश्न भी उठ रहा होगा कि आखिर बाल यौन शोषण करने वाले लोग ऐसा क्यों करते है |बाल यातना एवं अवैध तश्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस (4 जून ) के मद्दे नज़रमनदर्शन-मिशन ने बाल यौन शोषण करने वाले लोगों की इस रुग्ण मनोवृत्ति का खुलासा कर दिया है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में‘पीडोफिलिया’ कहा जाता है और ऐसे कृत्य से आनंद की प्राप्ति करने वाले लोगो को ‘पीडोफिलिक’ कहा जाता है |

बच्चो से लाड-प्यार व दुलार-पुचकार कर उनसे हंसी-खेल करके खुद क्षणिक रूप से बच्चो जैसा बन जाने से तो शायद आपका मन भी आनंदित और तरोताजा हो जाता होगा क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक बचपना छिपा होता है जिससे बच्चो को प्यार करने से इसकी तृप्ति होती है | यह आनंद मनुष्य का स्वस्थ्य मानसिक भोजन होता | परन्तु आप को जानकर आश्चर्य होगा कि कुछ लोग इस मानसिक भोजन के अस्वस्थ रूप से से ही तृप्त व आनंदित होते है | ऐसे लोग बच्चो को प्यार दुलार कि बजाय उनका यौन शोषण व यातनाये देकर संतुष्ट व आनंदित होते है और धीरे-धीरे यह मनोविकृति एक मादक-लत के रूप में हावी होकर‘पीडोफिलिया’ नामक मनोरोग का रूप ले लेता है |

‘पीडोफिलिया’ नामक मनोरोग से ग्रसित लोगों से मानव समाज को खतरा होने कि सम्भावना बनी रहती है तथा जिसका शिकार मुख्यत मासूम बच्चे होते है |‘पीडोफिलिया’से ग्रसित व्यक्ति मासूम बच्चो को क्रूरतम मानसिक व शारीरिक यातनाये देने में आनंद की प्राप्ति करता है तथा उसके लिए यह एक ऐसा नशा बन जाता है कि वह बच्चो को यातनाये देने कि क्रूरतम विधिया इजाद करता जाता है जिसमे बच्चो के साथ सेक्स, काटना, जलाना, यहाँ तक कि उनके टुकडे-टुकडे कर उनके मांस तक खानाशामिल है |

हमारे देश मे बहुत से पीडोफिलिक विदेशी सैलानीआते है, जिससे कि बच्चो के तस्करो की अच्ची कमाई हो रही है। वैसे तो कुछ देशो मे बच्चो को ऊट की पीथ पर बान्धकर ऊटो को दौडाया जाता है जिससे बच्चे कि चित्कार् से वहा के लोग आनन्द की प्राप्ति करते है यह भी पीडोफिलिया का ही एक उदाहरण है ।

मनोगतिकीय कारक :
मनोविश्लेषक डॉ. आलोक मनदर्शन के अनुसार ऐसे मरीजो की गर्भकाल में उनकी माँ को क्रूरतम मनोशारीरिक यातनाओं से गुजरे होने की प्रबल सम्भावना होती है | साथ ही ऐसे मरीजो को बाल्यावस्था में परिवार द्वाराभावनात्मक सहयोग व प्यार मिलने की बजाय लगातार शारीरिक व मानसिक प्रतारणा झेलनी पड़ी हो सकती है | कुछ व्यक्तित्व विकार भी इसके लिए जिम्मेदार होते है | इसमें परपीड़क व्यक्तित्व विकार, अमानवीय व्यक्तित्व विकार तथा व्यग्र व इर्ष्यालू व्यक्तित्व विकार प्रमुख है | अवसाद, उन्माद व स्किज़ोफ्रीनियाजैसे मनोरोग से पीड़ित लोग भी पीडोफिलिया के शिकार हो सकते है |

उपचार :-
ऐसे मनोरोगी नशे की पूर्ति बच्चो से न कर पाने की दशा में अपनी तलब को दूर करने के लिए मादक द्रव्यों का भी सेवन करने लगते है और धीरे-धीरे नशाखोरी के चंगुल में आ जाते है और उनमे घोर अवसाद इस प्रकार घर कर जाता है कि उनमे आत्महत्या कर लेने का एक मादक खिचाव पैदा हो जाता है | ऐसे मनोरोगी को सर्वप्रथम इस बात के लिए जागरूक किया जाता है कि वह ‘पीडोफिलिया’ नामक मनोरोग से ग्रसित है जिसका इलाज पूर्णतया सम्भव है | उसे सामाजिक संकोच व कलंक के प्रति गोपनीयता के आधार पर आश्वस्त करके उसके परिवार में भावनात्मक सहयोग व प्यार को पुनर्स्थापित किया जाता है | फिरवर्चुअल एक्सपोजर थिरेपी तथाफैन्टसी डिसेन्सटाईजेसन के माध्यम से उसके परपीड़क व्यवहार को उदासीन किया जाता है जिससे वह आत्मनिरीक्षण के माध्यम से अपनी अंतर्दृष्टि का विकास इस प्रकार कर पाता है है कि उसके अर्धचेतन से उत्पन्न हो रहे विकारग्रस्त आसक्त विचारों व आवेशो को वह सक्रिय रूप से वह पहचानने लगता है तथा धीरे-धीरे उसकाचेतन-मन उसके रुग्ण अर्धचेतन-मन पर काबू पाने लगता है औररोगी का स्वस्थ मानसिक-पुनर्निर्माण हो जाता है |

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